Shiv Tandav Stotram: हिंदी और इंग्लिश में पूरा पाठ व अर्थ | PDF सहित

भगवान शिव की महिमा का वर्णन करने वाले अनेक ग्रंथों और स्तोत्रों में "शिव तांडव स्तोत्रम्" का विशेष स्थान है। यह स्तोत्र अत्यंत शक्तिशाली, काव्यात्मक और लयबद्ध है, जिसे लंकेश रावण ने रचा था। यह ना केवल शिव की उपासना का एक दिव्य माध्यम है, बल्कि इसमें छुपे हुए आध्यात्मिक और तांत्रिक रहस्य भी साधकों के लिए मार्गदर्शक बनते हैं।
इस लेख में हम आपके लिए शिव तांडव स्तोत्रम् का सम्पूर्ण पाठ प्रस्तुत कर रहे हैं — हिंदी और इंग्लिश में अर्थ सहित, ताकि हर पाठक इसका लाभ आसानी से उठा सके।

शिव तांडव स्तोत्रम् की विशेषताएं

  1. यह स्तोत्र रावण द्वारा रचित है, जिन्होंने शिव को प्रसन्न करने के लिए इसे अपने तप के दौरान गाया था।
  2. इसमें भगवान शिव के सौंदर्य, शक्ति और तांडव नृत्य का अत्यंत सुंदर चित्रण है।
  3. इस स्तोत्र का नित्य पाठ करने से व्यक्ति को भय, दुख, रोग, क्लेश और कर्मबंधन से मुक्ति मिलती है।
  4. यह स्तोत्र उच्चस्तरीय श्रवण, पठन और जप साधना के लिए उपयुक्त है।

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शिव तांडव स्तोत्रम् 

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिर्मम त्व शंकर॥

धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिंपनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महा‍कपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्ध
धनञ्जयाधरीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरेषु घोषिणं
चकार ताण्डवं शिवो शिवः शिवः तनोतु नः॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥

अगर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमाफणि
ध्रुगद्ध्रुगद्ध्रुनिर्गमत्करालभालहव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकमणि
स्रजोज्वलङ्गलोलवेल्लहीकपोलवल्लरी।
विराजमानमूर्धनि ध्वजप्रभद्धकन्धरं
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भजंहि लोकशङ्करम्॥

शिवेति मंत्रमुच्चरन्‍शिवाय नम इत्यपि
यदा यदा हि शंकरं स्मरामि कृतं शुभं।
श्रियम्भिकां सदा स्मरन्‍कठिन्यवर्जितं मया
जगत्त्रयं ममात्मवद्भवेत् सदाशिवप्रभो॥

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्‍ब्रह्मण्यमोक्तमेकदा यः श‍ि‍वप्रियः।
स वंशपावनः सदा शिवालये वसन्क्षणं
भवेत्स नन्दती नृणां भवोद्भवपदं यथा॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदा सुललितां कुरुते त्रिलोके॥

य इदं पाठति नित्यं स्तोत्रं शिवसमाहितः।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

॥ फलं श्लोक ॥
इति श्रीरावणकृतं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

शिव तांडव स्तोत्रम् Lyrics Inहिंदी 

जटाओं से बहती हुई गंगा की धारा से पवित्र स्थान पर,
गले में लिपटी विशाल सर्पमालाओं के साथ,
डमरू की आवाज़ गूंजती है – डम-डम-डम-डम…
ऐसे उग्र तांडव करने वाले शिव हमें कल्याण दें।

शिव की जटाओं में गंगा की लहरें मंथर गति से बह रही हैं,
उनके सिर पर लहराती हैं जैसे सुंदर बेलों की लताएँ।
उनके ललाट पर अग्नि प्रज्वलित हो रही है – धग-धग-धग,
चंद्रमा को धारण करने वाले उस शंकर में मेरी भक्ति बनी रहे।

शिव की लीला से हिमालय की कन्या (पार्वती) प्रसन्न होती हैं,
जिनकी करुणा से सृष्टि में प्रसन्नता फैलती है,
जिनकी दृष्टि से बड़ी से बड़ी आपत्ति शांत हो जाती है,
ऐसे दिगम्बर शिव में मेरा मन सदा रमण करे।

शिव की जटाओं में सर्प की फण की मणि चमक रही है,
उनके शरीर पर कदंब के कुंकुम से रंगे दिशाओं की सुंदरता है,
वे हाथी की खाल पहने हुए हैं,
भूतों के स्वामी शिव मेरे मन को अद्भुत आनंद दें।

शिव के चरणों की धूल से इंद्र आदि देवताओं के मुकुट शोभायमान होते हैं,
वे सर्पों की माला से जटाओं को बाँधते हैं,
और उनके सिर पर चंद्रमा शोभायमान है,
ऐसे शिव की कृपा हमें सदा प्राप्त हो।

शिव के ललाट से अग्नि की चिंगारियाँ निकलती हैं,
जिन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया,
देवताओं के स्वामी भी उनके आगे नतमस्तक होते हैं,
चंद्रमा की शीतल किरणें उनके शिखर पर शोभायमान हैं,
ऐसे महाकाल की जटाओं से हमारा कल्याण हो।

तीन नेत्रों वाले शिव के ललाट से ज्वाला निकल रही है,
जिन्होंने कामदेव को नष्ट किया,
जो पार्वती के सुंदर वक्षस्थल पर चित्रकारी करते हैं,
ऐसे त्रिनेत्रधारी में मेरी भक्ति बनी रहे।

जिनकी गर्दन घने बादलों से ढकी रात की तरह है,
और जिनकी गूंज गुफाओं में गूंजती है,
ऐसे शिव उग्र तांडव करते हैं,
वो हम सबका कल्याण करें।

नीले कमल की छाया जैसी आभा से युक्त,
गले में सर्पों की माला धारण करने वाले,
जो कामदेव, त्रिपुर, संसार, यज्ञ, गजासुर, अंधकासुर और मृत्यु तक का नाश करते हैं,
ऐसे शिव को मैं नमन करता हूँ।

जो समस्त कलाओं के रसस्वरूप हैं,
जो जीवन की मधुरता को लहरों की तरह प्रकट करते हैं,
जो कामदेव, त्रिपुर, भव, यज्ञ, गजासुर, अंधक और यमराज का अंत करते हैं,
उन शिव की मैं आराधना करता हूँ।

जिनके मस्तक की अग्नि सर्पों की फुफकार से और भी प्रचंड होती है,
मृदंग की ध्वनि पर शिव तांडव करते हैं,
ऐसे उग्र नर्तक शिव की जय हो।

जो पत्थर की शैय्या पर सर्पों की मोतियों जैसी माला पहने हैं,
जिनके कपोल लहराते हैं,
जो त्रिपुरासुर और कामदेव का नाश करते हैं,
ऐसे लोकों के कल्याणकर्ता शिव को मैं प्रणाम करता हूँ।

जो ‘शिव’ नाम का जप करता है,
और सदैव शिव का स्मरण करता है,
जो पार्वती को भी आदरपूर्वक स्मरण करता है,
उसके लिए तीनों लोक स्वयं के समान हो जाते हैं।

यह स्तोत्र जो भी भक्त प्रतिदिन श्रद्धा से पढ़ता है,
वह शिव का प्रिय बन जाता है,
उसका कुल पवित्र होता है और वह शिवलोक प्राप्त करता है।

जो रावण द्वारा रचित यह स्तोत्र प्रदोषकाल में शिव पूजा के बाद पढ़ता है,
उसे स्थिर लक्ष्मी (संपत्ति) प्राप्त होती है,
रथ, हाथी, घोड़े आदि वैभव से युक्त जीवन प्राप्त होता है।

जो व्यक्ति इस स्तोत्र को प्रतिदिन श्रद्धा और एकाग्रता से पढ़ता है,
वह शिवलोक को प्राप्त करता है और शिव के साथ आनंदपूर्वक रहता है।

इस प्रकार लंकेश रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्तोत्र पूर्ण हुआ।

शिव तांडव स्तोत्रम् lyrics in English

With matted locks drenched by the sacred river Ganga,
Wearing garlands of mighty serpents around His neck,
As the damaru echoes "dam-dam-dam-dam",
May the fierce Tandava-dancing Shiva bless us with auspiciousness.


In His matted hair, the celestial river Ganga flows playfully,
Like wandering vines dancing on His head.
With blazing fire on His forehead—crackling and flashing,
May my devotion remain firm in Lord Shankara, who wears the crescent moon.

Beloved of the Himalayan daughter,
Whose glance brings joy to the universe,
Whose compassionate gaze controls great calamities,
May my heart delight forever in the sky-clad Lord.

A snake coils in His locks with shining gem-like hoods,
He is smeared with the saffron paste of heavenly maidens,
Clothed in elephant hide,
May the Lord of all beings bring wonder to my mind.

Gods like Indra bow at His dust-laden feet,
He adorns His matted locks with snakes,
With the moon as His crown-jewel,
May that glorious Lord bestow us eternal wealth (of devotion).

With forehead blazing fire and sparks flying out,
Who swallowed the five arrows of Kamadeva,
Before whom the celestial beings bow,
Whose head shines with the crescent moon—
May the great Kapali bless us with His divine presence.

With fierce flames bursting from His forehead,
Who burned Kamadeva into ashes,
Who paints art upon Parvati's bosom,
May I ever love that three-eyed artist—Shiva.

His neck wrapped in darkness like storm clouds at midnight,
Echoing within mountain caves,
Performing the fierce Tandava,
May that Shiva bring us auspiciousness.

With the radiance of dark blue lotuses,
Throat adorned with a garland of snakes,
Destroyer of Kama, Tripura, bondage, sacrifice, Gajasura, Andhaka, and even death—
To that great Shiva I bow.

Embodiment of all divine arts and sweetness,
Who expands like the nectar of joy,
Slayer of Kama, Tripura, worldly bondage, sacrifices, Gajasura, Andhaka, and even Yama—
To that supreme terminator, I bow.

Whose fiery forehead blazes with snake-hiss rhythms,
Dancing to the beat of the powerful mridangam,
The fierce Tandava flows from Him—
Victory to Lord Shiva!

Adorned with garlands of pearls and serpents,
Cheeks glowing with divine light,
Who destroyed Tripura and Kama,
I worship the benefactor of all worlds—Shiva.

Chanting the name “Shiva” and saluting Him,
Remembering Him brings all goodness,
With remembrance of Ambika too,
May the three worlds become like my own self, O Sadashiva!

He who recites this sacred hymn daily with devotion,
Becomes dear to Lord Shiva,
Purifies his lineage and attains Shiva’s abode—
The highest liberation.

One who chants this hymn at twilight after worship,
Attains wealth, elephants, horses, and royal pleasures,
Goddess Lakshmi resides with him forever in all worlds.

He who daily recites this hymn with devotion and focus,
Attains the abode of Shiva and rejoices eternally with Him.

Thus ends the Shiva Tandava Stotram composed by Ravana, King of Lanka.

Shiv tandav Stotram pdf डॉनलोद

क्यों पढ़ें शिव तांडव स्तोत्रम्?

1. मन की शांति: यह स्तोत्र शिवजी की उपासना का श्रेष्ठ साधन है, जिससे मानसिक शांति मिलती है।
2. नकारात्मक ऊर्जा का नाश: नियमित पाठ से नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं।
3. भक्ति और शक्ति का मेल: इसमें शिव की आराधना और उनके रौद्र रूप दोनों का समावेश है।
4. ध्यान केंद्रित करने में सहायक: इसकी गति और छंद ध्यान की एकाग्रता में सहायक होते हैं।
5. संकटों से रक्षा: इसे पढ़ने से जीवन के संकटों और आपदाओं से रक्षा होती है।

शिव तांडव स्तोत्रम् का पाठ कब करें?

  1. प्रदोष काल, सोमवार या महाशिवरात्रि के दिन इसका पाठ श्रेष्ठ माना जाता है।
  2. सुबह के समय स्नान करके शुद्ध होकर इसका पाठ करना विशेष फलदायी होता है।
  3. ध्यान और एकाग्रता से, ‘ॐ नमः शिवाय’ जप के साथ पढ़ने से इसकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।

Shiv Tandav Stotram Lyrics


निष्कर्ष

शिव तांडव स्तोत्रम् न केवल एक स्तुति है, बल्कि यह शिव के परम भक्त रावण की भक्ति का जीवंत उदाहरण भी है। इसे पढ़ने और समझने से न केवल आत्मिक बल प्राप्त होता है, बल्कि जीवन में शांति, सफलता और शिवकृपा भी प्राप्त होती है।

यदि आप भी भगवान शिव की कृपा पाना चाहते हैं, तो इस स्तोत्र का नियमित पाठ अवश्य करें।
इस लेख में हमने इसका हिंदी और अंग्रेज़ी अर्थ सहित पूरा संग्रह दिया है, ताकि आप इसे पढ़कर श्रद्धा और समझ के साथ शिव भक्ति में लीन हो सकें।

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